प्रेम कहानियों से शुरू करता हूं,, गुलामी का राज- पहले इंसान कुत्तों से प्यार करके पालता और मित्र बनाता है। फिर स्वार्थवश उसे बंधक बनाकर गुलाम बनाता। सोचता है,कि कहीं भाग न जाये। कुत्ता मनुष्य के प्यार में लाचार हो जाता है।कि मनुष्य उसे डंडे मारता है। फिर भी वह पूंछ हिलाते हुए मार खाता रहता है,लेकिन छोड़कर नहीं भागता है। क्योंकि कुत्ता मनुष्य के प्यार में अंधा हो चुका होता है। इसलिए मालिक की नाफरमानी नहीं करते हुए,वह गुलामी छोड़कर कहीं नहीं जा सकता,ऐसी ही स्थिति बहुजन समाज की है!..
किसान ने प्रेम से बैलों और सांडों दूध देने बाले पशुओं से किया, उन्हें गुलाम बनाया। क्योंकि दूध उसके बच्चे के लिए पौष्टिक आहार जो था। बच्चे दूध पी बलिष्ठ बनाये और खुद दूध पिया,इतना ही नहीं बल्कि उसकी नसबंदी करके उसे बैल बनाकर बंधक बनाया। फिर भी सांड,बैल,दूधारु पशुओं ने विद्रोह कयों नहीं किया, क्योंकि बह पालतू जानवर थे। किसी मदमस्त सांड,बैलों से बैलगाडी,हल चलाया।प्रेम में अंधा होकर आनंद आ रहा था। इसलिए उन्हें गुलामी का अहसास ही नहीं हुआ..... यह महत्वपूर्ण बात है।
धोबी और कुम्हार ने गधे को प्यार से पाला-खिलाया, और गधों से काम लिया, गधों को भरपेट भोजन मिलता था। इसलिए कभी गधों ने विरोध नहीं किया। उन्हें भरपेट भोजन मिलता था। कुम्हार और धोबी दोनों से गधे खुश थे। गधे कमजोर, और भोजन न मिलने पर भी खुशी खुशी काम करते रहे।गधे प्यार में पीड़ा सहने करके भी काम किया। धोबी और कुम्हार के पालतू गुलाम जानवर थे। गुलामी की ऐसी आदत पड़ जाती है। कि उसे अच्छाई बुराई का ध्यान ही नहीं रहता है।इसी तरह शोषित शूद्र,अछूत, ओबीसी एससी-एसटी को सर्वण गुलामी का अहसास नहीं हो रहा है। इसलिए बह हिन्दू हिंदुत्व और हिन्दू धर्म को श्रेष्ठ मानकर अपने महापुरुषों अर्थात पुर्वजों की गुलामी और त्याग की कीमत का जरा भी ध्यान नहीं है।.....
घोड़े के दौड़ने और समान ले जाने में देखकर सैनिक ने घोड़े को पकड़ा उसकी पीठ पर बैठा घोड़े ने पूरी ताकत से उसका विरोध चमक किया किन्तु अंततः सैनिक ने कभी प्रेम से कभी चाबुक मारकर उसे वश में किया लड़ाई करना सैनिक की जरूरत थी घोड़े की नहीं पर धीरे धीरे सैनिक ने घोड़े को गुलाम बनाया और अब घोड़ा सैनिक की गुलामी करने में अपनी शान समझने लगा किन्तु है तो वह सैनिक का गुलाम ही, गुलामी उसके दिमाग पर इस कदर छा गई ।
कि शादी की बारात में बारातियों के सामने वह नाचता है किन्तु गुलामी से मुक्त होने का कभी प्रयत्न नहीं करता.....
हाथी को प्रेम से अपने नजदीक लाया उसके बदन पर हाथ फिराया और धीरे धीरे उसे गुलाम बनाया अब यह महावत इस शक्तिमान प्राणी से बड़े बड़े काम कराने लगा, पहले वह इसे जंजीर से बांधता था किन्तु अब हाथी नाम के इस गुलाम को रस्सी से बांधता है क्योंकि हाथी अब महावत का गुलाम बन गया है…..
गुलाम बनाने की प्रक्रिया अत्यंत प्राचीन है यह प्रक्रिया मनुष्य ने ही निर्माण किया, इस प्रक्रिया द्वारा शक्तिशाली मनुष्यों ने शक्तिहीन लोगों को
व बुद्धिमान मनुष्यों ने बुद्धिहीन लोगों को गुलाम बनाया व अपने लिए इस्तेमाल किया इसके बहुत सारे उदाहरण इतिहास में मिल जायेंगे….
जानवरों ने कभी जानवरों को गुलाम नहीं बनाया , जानवरों द्वारा जानवरों को गुलाम बनाने का कोई उदाहरण नहीं मिलता किन्तु मनुष्यों ने मनुष्यों को गुलाम बनाया है….
जब जब गुलामों को अवसर मिला तब तब उन्होंने अपने मालिकों को खत्म कर दिया और मुक्त हो गए ऐसे भी बहुत सारे उदाहरण इतिहास में मिलते हैं।
किन्तु जानवर मनुष्य के विरुद्ध ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि उसकी बुद्धि सीमित है।
*जब यहां के बुद्धिमान किन्तु धूर्त लोगों को ऐसा लगने लगा कि अब इसके आगे सामान्य मनुष्य को गुलाम बनाए रखना संभव नहीं है तो इन धूर्त लोगों ने मनुष्य को गुलाम बनाए रखने के लिए ईश्वर नाम की संकल्पना का सहारा लिया और मनुष्यों को गुलाम बनाया, आज भी लोग ईश्वरीय संकल्पना के गुलाम बने हुए हैं इसी कारण मंदिर में एक पत्थर को करोड़ों रुपये दान ईश्वर को नहीं? बल्कि पुजारी ट्रस्टी को देकर धनवान बनाने वाले मनुवादी के एशो-आराम की व्यवस्था शोषित एससी-एसटी पिछड़ी जाति के लोग व्यवस्था कर रहे हैं,चिंता का विषय है।
*”गुलाम को गुलामी का एहसास करा दो,तो गुलाम खुद विद्रोह कर देगा “प्रमोद मूनमराठी से हिन्दी अनुवादक गुलामी गुलामों के सामने रखा है।जिसे एससी-एसटी पिछड़ी जाति वर्ग के लोगों को समझने जागरूक होने की जरूरत है।
रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आंफ इंडिया
जयभारत जयभीम (8800610118)

