डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ लेखिका एवं कवयित्री बैतूल, मध्यप्रदेश
तुमसे--
किसी दिन खाली समय में
करूँगी बातें....
जब पश्चिमांचल का सूर्य
अपनी लोहित अरुणिमा से
गोधूलि बेला के कपोलों को
नहलायेगा.....
जब मिलाप की बेला के
कोने-कोने.....
हमारे प्रेमरंग से भींग जायेंगे
तब मैं खाली समय में
करूँगी बातें.....
जब मेरे अक्षर शब्द भाव
तुम्हारी कल्पनाओं में आ
जायेंगे....
जब मेरा नारीत्व
तुम्हारे पौरुषत्व में समा
जायेगा....
तब किसी दिन खाली समय में
करूँगी बातें...
अभी न थोड़ी-सी प्रतीक्षा बाकी है,
अभी न तुम्हारे अंदर अभिमान की
पैनी धार बाकी है.....
इसलिए
फिर किसी दिन खाली समय में
करूँगी बातें...
जब न तुम्हारे चिंतन में नारीत्व के
उस निरूपण का सृजन हो,
जिसमें मैं रहूँ, मेरे अस्तित्व की
शैली रहे....
जिसमें न मेरा मूल्यांकन हो
सीता के नारीत्व की तरह
न विरोध हो तुम्हें, मेरे विरोध से
जिसमें न किसी तरह की आपत्ति हो
तुम्हें .....
मेरे ख्वाबों के विस्तार से
उस दिन खाली समय में
करूँगी बातें तुमसे.....!!

