तू प्रकाशपुंज, तू पथ का प्रदर्शक,
तेरी कृपा से ही, तम हर जाता,
हे गुरुवर !
तुझे नमन्, तुझे नमन्,तुझे नमन्।।
ज्ञान की ज्योति जला,
तू जीवन जगमग कर देता है।
अज्ञान के तिमिर को,
अपने आलोक से हर लेता है।
सच्चे हृदय से, शिष्य संताप को,
तू करता है, सदा ही शमन।
हे गुरुवर !
तुझे नमन्, तुझे नमन्, तुझे नमन् ।।
संस्कार सिखाता, सत् पथ, दिखाता।
तू सत्- असत् का भेद बताता।
तेरी कृपा से ही, जीवन पथ पर,
निर्भय हो, मैं करता हूं गमन।
हे गुरुवर !
तुझे नमन् , तुझे नमन् , तुझे नमन्।।
गुरु द्रोण बन, लक्ष्य पर,
शर साधना सीखा देता है।
माधव बन, मनुज मानस में,
ज्ञान गीता की, गंगा बहा देता है।
चित्त की चंचलता मिटा,
उसे बना देता है,
अमन – शांति का चमन।
हे गुरुवर !
तुझे नमन्, तुझे नमन्, तुझे नमन्।।
स्वरचितमौलिकअर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश


