अर्चना आनंद:- गाजीपुर उत्तर प्रदेश
सीतापुर गांव में कीर्तन नाम का एक कुम्हार और स्वयंप्रकाश मास्टर जी रहते थे। दोनों में बड़ी गहरी मित्रता थी। कारण था, दोनों के स्वभाव में बहुत समानता थी। इसलिए उन दोनों में बहुत पटती थी। कीर्तन बहुत ही आलसी था। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता था। ‘नाच न आवे आंगन टेढ़ा’, वह हर कार्य के लिए किसी और पर दोषारोपण कर देता। अपने पैतृक काम में भी उसका मन नहीं लगता था। जब भी वह घड़ा बनाने जाता। मिट्टी को अच्छे से भुरभुरी नहीं करता। बिलकुल अनमने तरीके से उसमें पानी डालता। जिससे मिट्टी कभी बहुत ज्यादा गीली, कभी बहुत ज्यादा कड़ी हो जाती और घड़ा टेढ़ा -मेंढ़ा बनता। इसी तरह आंवे में भी आग को अच्छी तरह नहीं लगाता। जिससे घड़ा कच्चा बनता। लेकिन था बड़ा बातूनी और चापलूस। चिकनी- चुपड़ी बातें कर ग्राहकों को अपनी जाल में फंसा लेता। जिससे उसका धंधा चलता रहता और रोजी-रोटी का जुगाड़ हो जाता।
यही हाल मास्टर जी का भी था। किसी तरह शिक्षक की डिग्री लेकर मास्साब बन गए। चूंकि शिक्षक थे, इसलिए समाज में इज्जत थी। लेकिन इनका पढ़ाने में मन नहीं लगता। लगता भी कैसे । क्यों कि, बेचारे के साथ भाग्य ने ही बड़ा क्रूर मजाक कर दिया था। इनका खुद कभी पढ़ने में मन नहीं लगा । इसलिए इन्हें पढ़ाने का दंड दे दिया। शिक्षा की गिरती गुणवत्ता के लिए ये कभी व्यवस्था को दोष देते, कभी अभिभावक को, कभी समाज को, तो कभी बच्चों को कोसते।
कभी अपने कर्तव्य के बारे में इन्हें सोचने का मौका ही नहीं मिला। एक बार इनके विद्यालय में जिला विद्यालय निरीक्षक का दौरा हुआ। चेक के दौरान व्यवस्था में बहुत सारी खामियां पाई गई। जिससे इन्हें सस्पेंड कर दिया गया और कारण बताओ नोटिस जारी की गई। इनके एक दोस्त थे, सीताराम। जो विधायक जी के लगोंटिया यार थे।
झट इन्होंने, उन्हें फोन लगाया और लगे गिड़गिड़ाने। कुछ पैसे लेकर मामले को रफ़ा- दफा कर दिया गया और ये बहाल हो गए।
‘एक तो करेला, दूसरा नीम चढ़ा’, इनका अहंकार अब और सातवें आसमान पर चढ़ गया।
‘सैंया भए कोतवाल तो, अब डर काहें का’, अब इन्होंने स्कूल आना भी कम कर दिया। पहले तो हर शाम कीर्तन से मिलने जाते, पर अब जब भी मौका मिलता, उसके पास पहुंच जाते और गप्पे मारते।
इधर कीर्तन के कच्चे घड़े की शिकायत दिनोंदिन बढ़ती गई। जिससे ग्राहक भी आने बंद हो गए और घर में खाने के लाले पड़ गए।
उधर मास्टर जी के न पढ़ाने और गै
रहाजिरी की शिकायत
शिक्षामंत्री जी तक पहुंच गई। चेक के दौरान वो विद्यालय से नदारद मिले। जिससे उन्हें निलंबित कर दिया गया।
अब कीर्तन कुम्हार और मास्टर जी दोनों, और ज्यादा समान हो गए। दोनों के पास न ही कोई काम था, न ही पैसे थे।
लेकिन पछताने के लिए इनके पास पर्याप्त समय था।
जब भी ये दोनों साथ बैठते , अपने किए पर पछताते।
पर अब क्या होने वाला था। ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत’।
समझने वाली बात है कि जिस तरह कुम्हार की कर्महीनता से एक पक्के घड़े का निर्माण नहीं हो सकता। उसकी प्रकार कुम्हार रूपी शिक्षक की कर्महीनता से देश निर्माण में सहयोग देने वाले , भावी पुरुषार्थी पुरुष का निर्माण नहीं हो सकता।

