तुम्हारे बेतरतीब बरताव से
मैं अभिप्रहत हुई...
किन्तु रोई नही
न ही मैं चिल्लाई
और न ही मैंने तुम्हें पुकारा
न कोई आरोप लगाया ....
बस शनै:-शनै: तुम्हारी जिंदगी से
पृथक कर लिया
निर्वाक रुखसत हो ली।
तुमने कदाचित,
सोचा कि फतह
हासिल कर ली मुझसे.....
लेकिन कालांतर में
ये मौन
तुम्हारी अंतरात्मा के ड्योढ़ी पर
आहट देगा
तुम बचना भी चाहो इससे
लेकिन यह मौन रुकेगा नही...
क्योंकि सच्चा प्रतिवाद
कभी शोर नही करता
यह मौन के साथ बहता है--
तब तक,
जब तक तुम्हारे मन में
पछतावे की
तपिश न उठे !!
डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ लेखिका एवं कवयित्री बैतूल, मध्यप्रदेश


