अर्चना आनंद :- गाजीपुर उत्तर प्रदेश
“खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे” यही हाल इस समय चचा चोमू का हो गया है। शांति का देवदूत बन, नोबेल का ताज न पहन पाने की चिंता इन्हें दिनों- दिन खाए जा रही है।इसी लिए ये सुबह,दोपहर, शाम ,रात किसी को कुछ भी बोले जा रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब एक दिन व्हाइट हाउस की छत पर चढ़कर न्यूक्लियर की बात करने लगे। अपने को महान साबित करने की कोशिश में चुनाव जीतकर जबसे आए हैं। इन्होंने पूरी दुनिया में लंका लगा रखी है। थोड़े कम- ज्यादा टैरिफ- टैरिफ का खेल इनका दुनिया के बहुत सारे देशों के साथ चल रहा है।
एक तरह से इन्होंने टैरिफ वॉर ही छेड़ दिया है। इन्होंने अपने सहयोगी यूरोपीय यूनियन को भी नहीं बख्शा है। सत्ता पर चाहे कोई बैठा हो, इनके मुल्क का इतिहास रहा है, हर देश के अंदरूनी मामले में अपनी नाक घुसेड़ने का और फिर वहां से दुम दबाकर भागने का।
1945 के द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, खाड़ी युद्ध को छोड़ दें तो इन्होंने कोई युद्ध नहीं जीता है।
वियतनाम जैसे छोटे से देश में इन्होंने 20 साल तक अपने सैनिकों की उपस्थिति बनाए रखी और उनके साथ युद्ध में बने रहे। यहां इनके करीब 60 हज़ार सैनिक मारे गए। उसके बाद भी इनकी जीत नहीं हुई। अंततः शांति समझौते के लिए इनको झुकना पड़ा। यही हाल इनका अफगानिस्तान में तालिबान के साथ रहा। 20 साल तक यहां भी ये तालिवानियों के साथ लड़ाई में रहे। जहां इनके 2312 सैनिकों की जानें गई। 816 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। प्रतिवर्ष अपने सैनिकों पर 35 अरब डॉलर का खर्च वहन किए। 145 अरब डॉलर इन्फ्रास्ट्राक्चर पर खर्च किए। अगस्त 2021 में ये सब तालिवान के हाथ में छोड़कर, यहां से इन्हें भागना पड़ा।
कभी तेल, कभी मिनरल्स तो कभी पूंजीवाद के विस्तार के लिए साम्यवादी सरकार की स्थापना के विरुद्ध, इनका संघर्ष पूरी दुनिया में कहीं न कहीं चलता ही रहता है।
विश्व की दो महाशक्तियों के विरुद्ध कोल्ड वॉर इसी का नतीजा था। दुनिया दो ध्रुवों में बंट गई थी। अंततः परिणाम हुआ सोवियत संघ का 15 देशों में विघटन। इसी के साथ कोल्ड वॉर का अंत हो गया। लेकिन रूस को इसकी टीस आज भी बनी हुई है। यूक्रेन का इतने लंबे समय तक युद्ध में बने रहने के पीछे भी इन्हीं का हाथ है।
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर परमाणु बम के प्रयोग से लेकर आज तक दुनिया में कई मोर्चों पर छोटे बड़े युद्ध हुए हैं। जिनमें इन गोरी लाल चमड़ी वालों का ही हाथ है।
बात करें भारत की तो कई मुद्दे हैं जिससे आजकल ये इस पर खार खाए हुए हैं और 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिए हैं।
इन्होंने नोबेल पीस प्राइज के लिए पूरी दुनिया में सीज फायर कराने का ठेका ले रखा है। इसी के क्रम में भारत ने जब ऑपरेशन सिंदूर किया तो ये गला फाड़- फाड़ कर पूरी दुनिया में चिल्लाने लगे कि सीज फायर हमने कराया ।
जिसे भारत ने नकार दिया। जिससे नोबेल प्राइज के इनके मंसूबे पर पानी फिर गया और ये भारत पर आग बबूला हो गए। दूसरे भारत की इकोनॉमी तेजी से ग्रोथ कर रही है।
जो जापान को पीछे छोड़ कर दुनिया की चौथी नंबर की हो गई है। जिसकी पुष्टि आई एम एफ की अप्रैल 2025 की विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट से होती है।
यह बात भी इनको नागवार गुजरी। इसी कारण ये भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाली कृषि और डेयरी क्षेत्र में अपना घुसपैठ बना इसकी आर्थिक प्रगति पर लगाम लगाना चाहते हैं।
भला हो हमारी सरकार का, जिसने अपने अन्नदाता के हित को ध्यान में रखते हुए,तमाम दबावों के बावजूद इनकी इस मंशा को पूरी नहीं होने दिया।
लोकतंत्र में हमारे विचारों को लेकर आपस में मत विभिन्नता हो सकती है। लेकिन अपने देश के गौरव, मान- सम्मान और नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए, इन विदेशी ताकतों के विरुद्ध एकजुट होकर हमें खड़े रहना चाहिए।
हम अपना पक्ष विश्व पटल पर मजबूती से तभी रख सकते हैं, जब हम आर्थिक रूप से सक्षम हों। यह तभी होगा जब हम अपने देश को टेक्नोलॉजी में आगे ले जाएं। स्टार्टअप और इनोवेशन को प्राथमिकता दें। अपनी शिक्षा को ज्ञान के साथ – साथ रोजगारपरक बनाएं।
देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनायें। टूरिज्म को बढ़ावा दें। यात्रा को सुविधापूर्ण और सुरक्षायुक्त बनाएं। जिससे महिलाएं भी देश के विकास रथ को खींचने में निर्भीक होकर साथ दे सकें। यह सब अकेले सरकार के बलबूते नहीं होने वाला। इसके लिए हर भारतीय को ईमानदारी से प्रयास करना होगा।


