साकार सृष्टि के दो भगवान है,साकार सृष्टि में साकार भगवान माता पिता है, साकार सृष्टि में प्राकृति भगबान निराकार है। धर्मो ने जो भगवान बनाये या पैदा किए, उनकी आकृति कहा से लाये। आज इसी सत्य पर चिंतन है।
साकार सृष्टि में साकार भगवान माता पिता है। माता पिता ही सबसे पहले अच्छे बुरे, दुनिया की साकार पहचान कराते हैं। जिसके बदले कुछ नहीं लेते हैं, निस्वार्थ भाव से लालन पालन करते हैं।हमे एक प्रगतिशील अच्छा इंसान इंसानियत का बोध कराते हैं। जब हम वालिंग होते उसके बाद हम अपने संस्कार अपनी मित्र मंडली एवं समाज से सीखते हैं। इसके बीच हम अपने माता पिता के सपनों के सपूत -कपूत बनते हैं। भगवान इंसानों को न लड़ता है, और नहीं ही मारता है।वह तो ऐसी बीमारी पैदा कर देगा, जिससे पूरी दुनिया खुद व खुद खत्म हो जायेगी।जिस दिन दुनिया इस सत्य को मान लेगी।उसी दिन काल्पनिक धर्म के भगबान भगवान नहीं हो सकते। भगवान को किसी ने आज देखा नहीं है, तो भगवान की तस्वीर किसी राजा में नहीं तलाश कर सकते यही धर्म निराकार भगवान अस्तित्व खत्म नकार रहे है।
प्राकृति निराकार भगवान है, जिसने दुनिया बनाई है। दुनिया जिसके नियमों, शक्तियों में कोई वदलाव नहीं कर सकतीं, वह प्राकृति भगबान की निःशुल्क देन है।वह शक्तियां भगवान नहीं? बल्कि निराकार भगवान के रूप में शक्ति है। यह दुनिया के जीव जंतु,पशु, पक्षी, पेड़ पौधे तो जानते और मानते हैं, लेकिन इंसान नहीं मानता। इसलिए परोपकार इंसानियत दुनिया से खत्म हो रही है, नफ़रत का दौर चल रहा है। जिसके कारण निराकार भगवान रुठ रहा है।
धर्म पूर्ण सत्य नहीं है,क्योंकि धर्मो को इंसानों ने व्यूह रचना करके धर्मग्रंथों लिखा है, कोई धार्मिक ग्रंथ प्राकृति भगबान निराकार ने नहीं लिखा है। इसलिए पूर्ण सत्य नहीं हो सकतें, धर्मो में जिन्हें भगवान बताया जा रहा है। वह उस दौर के राजा महाराजा और उनकी पत्नी,बेटा बेटियों को भगवान देवी देवता लिखा गया, और उनकी तस्वीरों को पेश किया गया है,जो अधूरा सत्य है। प्रकृति धर्म में इंसान इंसानियत,परहित परोपकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। इंसान के धर्म में मानसिक गुलामी, इंसान में नफ़रत की गंध आ रही है।वह धर्म नहीं हो सकता, जिसमें इंसान इंसानियत का खून होता है।
वह धर्म सत्य कभी नहीं हो सकता। जिसमें इंसानों से नफ़रत एक दूसरे को नीचा छूआछूत,अहंकार,अंधविश्वास, अंधभक्ति से भरा हो। हिंदू धर्म में सामाजिक न्याय ,सम्मान था का बहुत बड़ा अभाव है। एवं इंसानियत को जगह न हो, वह धर्म सत्य नहीं हो सकता। हिंदू धर्म चलाने के मनु ने मनुस्मृति बिधान बनाया। जिसमें उचनीच छूआछूत काल्पनिक विचारों से भरा हुआ है। धर्म चलाने के लिए वर्ण व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था जाति, जातियों में नफ़रत, ऊंचनीच, छूआछूत,अहंकार हो, वह समाज धर्म सत्य नहीं हो सकता।
कर्म ही पूजा है,कर्म से भाग्य वदला जा सकता है।
उदाहरण के लिए "एक गांव में अमीर और गरीब मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं, तभी गांव पूर्ण होते हैं।एक अमीर और एक गरीब रहते थे। गरीब हमेशा अमीर के भाग्य को अच्छा और अपने भाग्य को बुरा कहकर कोसता रहता था।
एक दिन ऐसा आया, कि अमीर भी गरीब हो गया।अब दोनों की जिंदगी एक जैसी हो गई। एक दिन दोनों एक अमीर से सहायता मांगने पहुंचे,कि साहव कुछ पैसे दे दो, तो हम कुछ काम कर लेंगे।अमीर ने दोनों को कुछ पैसे दिए,और कहा जाओ मछली मारने का काम कर लेना। उसमें तुम्हारे घर का भी खर्च चल जायेगा और बचत भी कर लोगे।
दोनों ने मछली मारने का एक एक जार बनाया और मछली का कारोबार करने लगे। जिंदगी अच्छी खासी खुशाल जिंदगी चलने लगी। लेकिन गरीब खाने कमाने और मस्त जिंदगी में जीवन जीने लगा, आगे बढ़ने की कोई लालसा नहीं की, क्योंकि वह भाग्य पर भरोसा करने वाला इंसान था।
अमीर भी खुशहाल जिंदगी जीने के साथ उसे आगे बढ़ने की ललक थी, इसलिए वह धन बचत करके जारों की संख्या बढ़ाकर नया नौकर काम पर रख लेता था। वेतन देने के साथ वह अच्छी खासी रकम भी बचा लेता था। फिर वह एक दिन बहुत बड़ा अमीर बन गया, गरीब वहीं की वहीं गरीब ही रहा।
मेरा यह साकार भगवान, निराकार प्रकृति भगवान , गरीब अमीर की कहानी से से तात्पर्य है।कि बिना चिंता और चिंतन के सही मार्ग भी नहीं मिल सकता। तो धर्म ग्रंथों एवं भाग्य से कुछ भी नहीं हासिल हो सकता।
कर्म प्रधान विश्व रच राखा, कर्म से भाग्य बदला जा सकता है। भगवान ने जो दिया, वह काफी है, इससे अधिक के लिए आपको स्वयं चिंता चिंतन करना होगा। इसके लिए किसी धर्म नहीं बल्कि इंसान इंसानियत सोच की जरूरत है। लेबर पार्टी आंफ इंडिया ऐसे ही भारत को बनाने की दिशा में काम कर रही है। यह शोषित वर्ग को समझना चाहिए।
रूमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आफं इंडिया
जयभारत जयभीम (8800610118)

