अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश
जन्मना जायते शुद्र: संस्कारात् भवेत् द्विज:।
वेद पाठात् भवेत् विप्र:, ब्रह्म जानाति इति ब्रह्मण:।।
यह श्लोक स्कंदपुराण, के नागर कांड से है –
जिसका अर्थ है: “जन्म से सभी शुद्र होते हैं, संस्कारों से वे द्विज कहलाते हैं। वेद पढ़ने से विप्र बनते हैं, और ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण कहलाता है।
इसे थोड़ा विस्तार से हम यहां समझ लेते हैं
“जन्मना जायते शुद्र: ” इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति जन्म से शुद्र होता है। यहां “शुद्र” का अर्थ अज्ञानी या आध्यात्मिक ज्ञान से रहित व्यक्ति से है।
“संस्कारात् भवेत् द्विज:”
“द्विज” का अर्थ है “दो बार जन्मना” । उपनयन संस्कार के बाद, व्यक्ति को “द्विज” माना जाता है। यह संस्कार उसे शिक्षा और सामाजिक दायित्वों के लिए तैयार करता है।
“वेद पाठात् भवेत् विप्र:”
वेदों का अध्ययन करने से व्यक्ति विप्र(विद्वान) बनता है।
“ब्रह्म जानाति इति ब्राह्मण:”
जो ब्रह्म को जान लेता है, वही सच्चा ब्राह्मण है।
यह श्लोक वर्ण व्यवस्था को कर्म और ज्ञान के आधार पर परिभाषित करता है।
इसी बात को भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गीता में कहा है –
“चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुणकर्म विभागश:”
लोगों के गुण और कर्म के अनुसार मैंने ही चार प्रकार के विभागों की रचना की है।
वेदों में भी लोगों को चार प्रकार के व्यवसायों में वर्गीकृत किया गया है, उनके स्वभाव और गुण कर्म के आधार पर,न कि जन्म के अनुसार।
आप लोग समझ ही गए होंगे कि मेरे कहने का आशय क्या है, मैं किस परिप्रेक्ष्य में बात करना चाहती हूं।
अभी हाल ही में हमारे समाज में एक घटना घटी है।
तथाकथित यादव कहे जाने वाले एक संत द्वारा भागवत कथा कहने पर कुछ तथाकथित ब्राह्मण समाज के लोगों द्वारा उनकी शिखा काट दी गई, और उनके साथ अभद्र व्यवहार किया गया। मामला जब तूल पकड़ा तो उसकी गंभीरता को कम करने के लिए संत पर छेड़खानी और फर्जी आधार कार्ड का आरोप लगाया गया।
संत की योग्यता नहीं है या वो फ्रॉड है तो, आप कानून नहीं है कि किसी को सजा दे देंगे। वो काम कानून का है। आप उस पर ही छोड़ दें।
तब से लेकर आज तक हमारे समाज में और टी ०वी० चैनलों पर घमासान मचा हुआ है।
देश का एक नागरिक होने के नाते हम लोगों का ये कर्तव्य है कि हम समाज में घट रही इस तरह की घटनाओं पर निष्पक्ष रूप से चिंतन करें कि इस तरह की घटनाएं हमें क्यों गाहे बगाहे देखने को मिलती रहती हैं।
धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा- पाठ कराने का अधिकार क्या सच में सिर्फ ब्राह्मण को ही है किसी और को नहीं।
जहां तक मेरा मानना है इसका उत्तर “हां” होगा।
लेकिन पहले हमें ये तो समझना होगा कि ब्राह्मण कहते किसे हैं।
जैसा कि ऊपर दिए गए आध्यात्मिक ग्रंथों के उदाहरणों से सिद्ध हो चुका है कि ब्राह्मण वो होता है, जिसे ब्रह्म ज्ञान होता है।
धर्म सत्य का पर्याय होता है, सत्य ही धर्म होता है और धर्म ही सत्य होता है। और सत्य सिर्फ आत्मा है, ब्रह्म है। जो इस ब्रह्म का साक्षात्कार कर ले, वही ब्रह्मज्ञानी, ब्रह्मण (विद्वान) होता है। और वही सही मायने में समाज को दिशा देने वाला सत्य का वाहक भी होता है।
तो क्या ? जाति के आधार पर अपने को ब्राह्मण कहने वाले सभी लोग ब्रह्मज्ञानी है। जिस जाति के आधार पर वो अपने को वेद, उपनिषद् कहने का दंभ भरते हैं।उस वेद और उपनिषद् में जाति का कहीं उल्लेख ही नहीं है।
“हां”, वर्ण व्यवस्था का आधार वैदिक साहित्य है। जो सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए बनाई गई थी। वेदों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की उत्पत्ति वेद पुरुष से बताई गई है। यदि ये एक ही शरीर से उत्पन्न हैं तो कोई छोटा और बड़ा कैसा हो सकता है।
शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं, चाहे मुख हो , भुजा हो, उदर या कटि के नीचे का भाग। शरीर तभी स्वस्थ रहेगा जब ये सभी स्वस्थ रहेंगे और अपना कार्य सुचारु रूप से करते रहेंगे। ये एक प्रतीकात्मक है जो गुण, कर्म और विशेषताओं की बात करता है।
अपने – अपने गुण और कर्म के अनुसार यदि सभी लोग कार्य करते रहेंगे तभी हमारा समाज रूपी शरीर स्वस्थ रहेगा और सुचारू ढंग से चलता रहेगा।
लेकिन जिन्हें न तो धर्म का ठीक से ज्ञान होता है, न वेद और उपनिषद् जानते हैं,न ही अपना इतिहास, न ही उनके अंदर इंसानियत होती है, या फिर उनका अपना निजी स्वार्थ होता है । वही लोग समाज में इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं। और हमारे नेता चाहे वो जिस भी पार्टी के हों, वो अपने वोट बैंक के लिए इस तरह की घटनाओं में, आग में घी की तरह काम करते हैं।
अभी एक आचार्य का बयान मैंने एक टी वी चैनल पर देखा। वो कह रहे थे, पूजा- पाठ कराना ब्राह्मणों का पैतृक कार्य है। उसमें अन्य जातियों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इसी तरह का एक बयान, एक नेता को भी मैंने देते हुए सुना। हालांकि वो तथाकथित ब्राह्मण नहीं थे। लेकिन उनका निजी हित सध रहा था, इसलिए ऐसा कहा।
अगर ब्राह्मणों का ये पैतृक कार्य है तो फिर उनको, खेती नौकरी, व्यवसाय छोड़ देना चाहिए, और इसी से अपनी आजीविका चलानी चाहिए। और क्षत्रियों को देश और लोगों के सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप देना चाहिए। और सारे वैश्यों को खेती, व्यापार, नौकरी करने देने चाहिए।
इस तरह का अप्रासंगिक बयान देने से पहले थोड़ा उनको पढ़ लेना चाहिए। जिस व्यास गद्दी और वेद पर, वो अपना एकाधिकार मानते हैं उनको ये समझना चाहिए कि उसकी महत्ता व्यास जी से ही है, जो जाति से ब्राह्मण नहीं थे।
अन्यथा, इस तरह का बयान देकर समाज में वैमनस्यता, ऊंच नीच फैलाकर, समाज और देश को तोड़ने का अपराध नहीं करना चाहिए।
हृदय बीच हिंसा लेकर,
कहाने चले पुरान।
तुझे कृष्ण से कोसों दूर रखेगा,
तेरा ये अज्ञान।।
सभी जनम से शुद्र हैं,
ना जाति का दंभ दिखा।
ब्रह्म को जो तू जान गया,
ब्रह्मण तभी कहा।।
काम, क्रोध, कामना, कपट,
जो सुमिरै दिन रात।
वही हमारे बीच चले हैं,
करन धरम की बात।।
धर्म धंधा, संप्रदाय सनातन।
ये इक्कीसवीं सदीं का,
हमारा वतन अधुनातन।।
चंदा से चौक पुरा,
मूर्ति लियो बिठाय।
अंतस् में अज्ञान भरा,
बोलो राम कहां समाय।।
ईश्वर अंतर सबके बसे,
चाहे कोई ठाकुर, अहीर,चमार।
क्यों ईश को तू अपमानित करता ?
कर जाति के नाम अत्याचार।।
राम नाम का नारा बांचें,
नाम मरम ना जाने।
केवल केसरिया झंडा लहरा,
आए हैं हमें सत्य सनातन सिखाने।।


