जय भारत जय भीम (8800610118)
———————————————————————— देश भर के सभी सरकारी विभागों में बहुजन शोषित वर्ग की यूनियन बैंक कर्मचारियों एक बड़ी संख्या है। भारत में संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव डॉ0आंबेडकर की जयंती को देश के सरकारी संस्थाओं के सभी कर्मचारी एबं यूनियन बढ़े हर्ष उल्लास के साथ मनाती हैं। यह एक अच्छी पहल और सराहनीय कार्य है।
बाबा साहब की जयंती महोत्सव मनाने के अतिरिक्त इन बहुजन शोषित समाज के कर्मचारियों एवं युनियनों का काम यही खत्म नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज के शैक्षिक,सामाजिक,आर्थिक के लिए कोई चिंतन और कार्य किया, ऐसा हमें नहीं दिख रहा है, जिससे समाज की स्थिति बदल सकती है। ऐसा हम लोगों का कोई कार्य नहीं है,
भारत में कर्मचारी यूनियनों के पदाधिकारी संख्या लगभग 10 हजार से अधिक होगी,और कर्मचारियों की संख्या लाखों में होगी, लेकिन सही आंकड़ा मेरे पास नहीं है, फिर मेरा अनुमान है, कर्मचारी यूनियनों के अधिकारी, पदाधिकारी यदि सिर्फ एक वर्ष में दस हजार रुपए समाज को दान कर दें, तो यह रकम भी करीब दस करोड़ होगी। इस चंदा से छोटे कारोबार,कुटीर उद्योग लगाते तो आज लाखों कुटीर उद्योग लग गये होते और बहुजन शोषित वर्ग आज गरीब नहीं व्यवसायी बन गया होता, आत्मनिर्भरता से समाज मजबूत होता है,.
यह चिंता, चिंतन की जरूरत है। प्रथम श्रेणी अधिकारियों की संख्या पूरे भारत में दस हजार हो सकती है। यदि बह दस हजार रुपये साल दें दें,तो यह रकम 10 करोड़ रुपये होती हैं। इस रकम से एक यूनिवर्सिटी,मेडिकल कॉलेज,इंजीनियरिंग कॉलेज, लॉ कॉलेज आदि हर साल बनवाये जा सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, हमारी चिंता परिवार है, समाज नहीं? यह सोचने की जरूरत है।
भारत के बहुजन शोषित वर्ग के द्वितीय श्रेणी, और राजपत्रित अधिकारी, और गैर राजपत्रित अधिकारियों की संख्या भी बीब हजार से कम नहीं होगी, यदि यह सभी मिलकर पांच हजार रुपए साल देते तो यह धन भी दस करोड़ रुपए साल होता,इसे भी कालेज और व्यवसाय में लगा दिया जाता तो हर हाथ को काम मिल गया होता, तो समाज का शोषण हर तरह से बंद हो गया होता और समाज मजबूत होता।
बहुजन शोषित समाज के लोगों को हित में कभी सोचा ही नहीं गया, इस तरह की सोच भी बाबा साहब अम्बेडकर के साथ चली गरीब, इसलिए समाज में बेरोजगार,मजदूर ही है। आज हम अंबेडकरवादी होने का राग अलपा रहे हैं, काम कोई नहीं कर रहा है, यह बहुसंख्यक समाज को सोचने की जरूरत है,कि अंबेडकरवाद क्या है, सही अंबेडकरवादी कौन?वह अंबेडकरवादी नहीं? जो अंबेडकरवाद से लाभ लेना चाहिता, असली वह अंबेडकरवादी जो लाभ कम समाज को मजबूत करने के तत्पर रहे।
तृतीय,चतुर्थ कर्मचारी संख्या भी लाखों में है, यदि यह दो हजार रुपए साल समाज के लिए चंदा देते तो यह धनराशि भी करोड़ों में बनती है, धनराशि चिकित्सा के क्षेत्र में लगायी गयी होती, तो देश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज होते। लेकिन हमने ऐसा कभी सोचा ही नही? हम सभी किसी न किसी रूप में नक़ली अंबेडकरवादी है,डा0अंबेडकर के कार्यवृत्त काल को संजोह कर,उस पर चलने का प्रयास करने वाला ही सच्चा अंबेडकरवादी है। लेकिन अधिकांश अंबेडकरवादी तो डा अंबेडकर की जीवन गाथा गुणगान से लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं। एससी एसटी ओबीसी के सभी राजनैतिक दल भी ऐसा ही कर रहे हैं, जिसके कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं,यह सोचने समझने का विषय है। हर पांच साल बाद दूसरा प्रोजेक्ट शुरू कर सकते हैं। जिससे बहुजन शोषित समाज को शैक्षिक, सामाजिक,आर्थिक सुधार तेजी से लाया जा सकता है, यही व्यवस्था परिवर्तन कहलाता है,जो हम नहीं कर रहे हैं,हम लोग सामाजिक क्रांति की बात करते हैं, क्या बिकास के बिना कर सकते हैं, आर्थिक विकास का कौन सा फार्मूला हमने बनाया जिसके द्वारा क्रांति ला सकते हैं। यह चिंता का विषय है।
भारत के संविधान के लिए लड़ाई समाज के हर इंसान ने उस समय लड़ी,तब जाकर बाबा साहब अम्बेडकर ने संबिधान लिखा, इसके बाद बाद आपको पढ़ने का अधिकार मिला, जिसके कारण आपने अपना नसीब लिखा, और आपको नौकरियां मिलीं, इसलिए आपकी नौकरियों में बहुजन शोषित वर्ग की हिस्सेदारी है, यह नौकरशाही को पता होना चाहिए, लेकिन भूल गए,कि आपकी नौकरी में समाज हिस्सेदार हैं।
नौकरी में समाज की चिंता नहीं की, लेकिन रिटायर होने के बाद अपने धनबल से बही जनप्रतिनिधि बनने को अंबेडकरवादी होने का चोला पहनकर आ गये, यह भी बहुजन शोषित वर्ग को समझने की जरूरत है, यही इस समाज के शोषण का कारण है। अंबेडकरवाद का मतलब है,समाज के प्रतिनिष्ठा, समर्पण,त्याग,ईमानदारी जो हमारे ज़मीर में नहीं है, हमारी आत्मा जिंदा नहीं है,मर चुकी है।वर्ना हम डा0अंबेडकर की जयंती मनाकर अम्बेडकवाद की इतिश्री नहीं करते। बहुजन शोषित समाज के राजनैतिक दलों के राजनेता,कर्मचारी मिलकर कुछ काम करते, तो बहुजन शोषित वर्ग बदल गया होता। लेकिन ऐसा हम लोगों ने नहीं किया। बहुजन शोषित समाज से अंधविश्वास,पाखंड जड़ से खत्म हो गया होता।
भारत के हर गांव में बहुजन शोषित समाज के अंदर लोगों में लोगों के प्रति बैमनष्यता,ईषा, ने जड़ें जमा रखीं हैं,हम अपने छोटे छोटे झगड़े भी समाज में बैठकर नहीं निबटा पा रहे हैं, तो अंबेडकरवाद की बात करना बहुत दूर है। यह बैमनयता खत्म करने की पहल लेबर पार्टी आफ इंडिया कर रही है, जिससे भाईचारा कायम हो,तब जाकर अंबेडकरवाद की बिचारधारा लोगों की समझ में आयेगी, तो आईए भाईचारा कायम करें। यह बात कहने और करने में कोई कठिनाई नहीं है,बस इच्छा शक्ति का होना बहुत आवश्यक है। तभी यह काम आसान हो जाएगा। रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आफ इंडिया


