रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी ऑफ इंडिया
25 दिसम्बर, दिन रबिवार-1927 को डा0बी0 आर0 अंबेडकर ने मनुस्मृति का दहन(जलाया)था। आपके मन यह सबाल जरुर होगा,कि मनुस्मृति क्या है। मनुस्मृति एक धार्मिक संविधान है, जिसे हिंदू अर्थात सनातन,बैदिक धर्म ग्रंथ नहीं? कहा जा सकता,बल्कि ब्रह्मांण हिंदू धार्मिक न्याय, राजा-महाराजा जमींदारो के समय यह कानूनी बिधान के रूप में लागू था। इस कानूनी दस्तावेज से राजपुरोहित राजाओं महाराजाओं कानूनी दंड संहिता भी कह सकते हैं,सनातन,बैदिक हिन्दू धर्म के रूप में जानते हैं। डा0 बी0आर0 अंबेडकर ने मनुस्मृति कानूनी दंड संहिता के कारण संपति,शिक्षा, धार्मिक पूजा पाठ, उनके रहने खाने मज़दूरी करने के अछूतों के खिलाफ इस्तेमाल हुआ। मनुस्मृति के कारण ही ऋषि शम्भूक को राम मारा था।रामराज्य का कानूनी दस्तावेज मनुस्मृति थीं। इस समय स्त्रियों,अछूतों कानूनी रूप से कोई अधिकार नहीं प्राप्त थे। आज अछूत जातियों को एससी-एसटी, पिछड़ी जाति वर्ग कहते हैं। रामराज्य में स्त्रियों-अछूत पुरुषों नीच,कानूनी अधिकार नहीं दिया था।
भारत में एससी-एसटी वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग,पिछड़ा वर्ग की जातियों को ही बहुजन समाज कहते हैं। बहुजन समाज को धार्मिक बराबरी,आर्थिक आज़ादी,सामाजिक समानता एवं राजनैतिक बराबरी का अधिकार मनुवादी समाज नहीं देता है। इनके साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। मनुवादी धार्मिक ग्रंथ बराबरी समानता का व्यवहार शूद्रों से नहीं करते हैं। ऐसा मनुबादी ग्रंथों में उल्लेख मिल जाएगा। मनुस्मृति बिधान के अनुसार हिंदू धार्मिक ग्रंथ काम करते हैं।आज चाहें जो कहें, लेकिन कालांतर में ऐसा ही हुआ है।इसलिए डा0अंबेडकर ने मनुस्मृति बिधान को जलाया था। यह एससी-एससी पिछड़ी जातियों के लोगों को समझने की जरूरत है।
डा अंबेडकर ने धार्मिक ग्रंथों को क्यों नहीं जलाया, यह भी बहुत रोचक और महत्वपूर्ण सबाल है। धार्मिक ग्रंथों में अत्याचार और उत्पीड़न से संबंधित कुछ नहीं है। धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से बहुजन शोषित समाज के लोगों को बंधुआ अर्थात मानसिक गुलाम बनायें रखने के लिए भगवानों को और पूजा-पाठ के संबंध में उल्लेख है। इसलिए नहीं जालाया जाना उचित समझा। यह बात बहुजन समाज को समझने की जरूरत है। हिंदू धर्म एक बड़ी आबादी का शोषण करता है। उन्हें उनके अधिकारों से बंचित करता है। यह लोगों को समझाना होगा। चिंतन करो।
आज बहुसंख्यक समाज के लोगों के बोट और नोट से कोई दुश्मनी नहीं है। लेकिन इन लोगों को बराबरी देने से बहुत बड़ी चिढ़ है। बहुजन शोषित समाज को किसी भी तरह से बराबर आने देने के खिलाफ है। चाहे शिक्षा चिकित्सा रोजगार हो या शासन प्रशासन सत्ता,या आर्थिक बराबरी,व्यवसाय और रोजगार तथा सत्ता देने के धुर विरोधी मनुबादी समाज है। यह बहुजन शोषित समाज को संगठित होकर समझना होगा।
लेबर पार्टी आफ इंडिया सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक बराबरी, शासन सत्ता में बराबरी लेने की दिशा में लोगों को संगठित करके लोगों को देने के लिए न्याय दिलाने काम कर रही है।
डा0अंबेडकर ने भगवान, ईश्वर हैं या नहीं है,इस पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन बौद्ध धर्म की 22प्रतिज्ञों में यह जरूर कहा है, कि मैं ब्रह्मा विष्णु महेश को भगवान नहीं मानता। भगवान बुद्ध ने भी ईश्वर या भगवान है,या नहीं है।इस पर कुछ नहीं कहा है। तो हम लोग अपनी ऊर्जा को ईश्वर और भगवान को लेकर बहस में क्यों खर्च करते हैं। हम डा0अंबेडकर और बुद्ध की बात को मानते हुए, पालन करना चाहिए। लेकिन इस बहुजन समाज के लोगों ने एक नये भगवान राजा रामचंद्र जी को मान लिया है। यह कितनी चिंता की बात है। चिंतन करो?कि आप किसे सही और ग़लत मानते हैं। अपने महापुरुषों की बात पर कोई अमल नहीं? दूसरे के धर्म महापुरुषों पर घंमड(एससी-एससी, पिछड़ी जाति वर्ग जातियों के लोग कर रहे हैं।) जो चिंता-चिंतन का विषय है।
नमस्ते,राम राम,जयश्रीराम,सीताराम,गुड मॉर्निंग, आदि सम्मान बोधक शब्द है,बैसे ही जयभीम संबोधन भी सम्मान बोधक है। लेकिन शब्द और संबोधन भी छूत,अछूत बन चुके हैं। जयश्रीराम सबसे बाद में गढ़ा गया,बह फेमस हो गया,बही जयभीम बहुत पहले से प्रचलित है,बह एससी का संबोधन हो गया, जिसे बोलने में शर्म आती है, लेकिन उनके द्वारा दिए अधिकारों से कोई शर्म नहीं है।उसे घमंड से लेने के लिए प्रयास करते हैं। शब्द संरचना में बहुजन शोषित समाज बहुत होशियार है, लेकिन अधिकारों से बंचित किया जा रहा है। इसके लिए भी सही रास्ता पकड़ने के लिए तैयार नहीं है।झूठे छलफरेवी लोगों के साथ देने में रुचि रखने वाला समाज कभी तरक्की और अधिकार नहीं ले सकता।
क्रिसमस ट्री डे,भारत में मनुस्मृति दहन की एससी -एससी पिछड़ी जातियों के लोगों को बहुत बहुत बधाई शुभकामनाएं।
रुमसिहं राष्ट्रीय अध्यक्ष लेबर पार्टी आफ इंडिया
जयभारत जयसंबिधान…


