अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश
बीनू के स्कूल के रास्ते में एक बड़ा- सा बगीचा पड़ता था।
जिसमें आम, अमरूद, जामुन, बेर, तरह -तरह के वृक्ष लगे हुए थे। जब भी वह दोस्तों के साथ स्कूल जाता, वहां रुककर पेड़ की छाया में, कुछ देर विश्राम करता और पेड़ पर गुलेल चलाकर कुछ फल तोड़ लेता। सब मिलकर खाते और कुछ बैग में रखकर, स्कूल ले जाते। स्कूल आते- जाते यह उसका नित्य का काम रहता था।
कुछ दिन बाद वहां एक फैक्ट्री का मालिक आया, और उस बगीचे को, उसके मालिक से, एक मोटी रकम देकर खरीद लिया।
देखते ही देखते वहां फलदार वृक्षों की जगह ऊंची फैक्ट्री लग गई। जिसमें लगी मशीनों की आवाजें दूर- दूर तक सुनाई देती। अब, जब भी वह स्कूल जाता, उसे न ही आम,अमरूद,जामुन के रसीले फल मिलते, न ही पेड़ों की छाया और ठंडी- ठंडी हवा।
चिमनियों से निकले धुएं, ऊंचे आकाश में उड़कर बादलों की तरह छा जाते। कुछ दिन बाद बीनू बीमार पड़ा।
उसे जोर -जोर से खांसी, छींक आने लगी। स्कूल भी जाना बंद करना पड़ा। उसके पापा उसे डॉक्टर के पास ले गए। जहां जांच के बाद पता चला कि उसे एलर्जी है।
डॉक्टर ने उसे धूल और धुएं भरे वातावरण से बचने की सलाह दी। और सुबह उठकर ठंडी एवम् स्वच्छ हवा में सैर करने को कहा।
बीनू सोच में पड़ गया। पेड़ तो सारे बगीचे के कट गए।
अब, ठंडी और स्वच्छ हवा कहां से लाऊं ?
बीनू ने घर आकर, दोस्तों के साथ संकल्प लिया कि आज से हम सब मिलकर अधिक से अधिक पेड़ लगाएंगे और लोगों को भी लगाने के लिए जागरूक करेंगे।

