डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’ लेखिका एवं कवयित्री बैतूल, म. प्र.
खुशी में डूबे रंग खिलखिला रहे है,
इतने सारे सतरंगी रंग,
कि पुष्प भी चुरा रहे है रंग,
तितलियों के लिये,
जब कोई मिलता है अपना,
एक रंग, दूसरे रंग से,
तब परिवर्तित हो जाता,
है उसका रंग पहले से।
कितने सारे रंग है जीवन में,
जब तुम क्या फर्क कर सकते हो,
गुलाल में, रक्त की लालिमा में,
निकल आये है लोग घरों से बाहर,
आसमान भी होता जा रहा है लाल,
फेंकता है कोई रंग का गुब्बारा,
भींग जाता है इंसान उस रंग से,
देखो-रंगों की बारिश हो रही है,
जो रंग रहा है रंग,
मेरी आत्मा को अंदर से,
हवा में गूंज रहा है,
सिर्फ एक शब्द बार-बार,
प्रेम ही है वो रंग,
जो छिपा रहा अपने रंगे हुये मन को।।

