कुसुम रानी सिंघल बल्लभगढ़, फ़रीदाबाद।
आओ सुनाऊँ तुम्हें साथियों एक सच्ची कहानी ,
आओ सुनाऊँ तुम्हें साथियों एक अच्छी कहानी ,
एक प्यारी सी मम्मी और प्यारी सी बेटी की सच्ची कहानी ,
वो मम्मी नहीं थी वो सच में थी एक ममता की मूरत।
वो बेटी नहीं थीं वो पूरी की पूरी मन्नतों की सूरत ।
वो बेटी नही थी वो लगती थी मानो ख़ुशियों की मूरत।
देखते देखते वो बडी हो गई।
ज़माने के रंगों में रंगने लगी ।
अब तो मम्मी की बातें न अच्छी लगें ।
मौज मस्ती की बातें ही सच्ची लगें।
परेशान मम्मी परेशान थी ।
समझ में न आता कुछ हैरान थी ।
विनय थी प्रभु से संभालो इसे , है तुम्हारी ही बेटी ।
विनय काम आई ,बिटिया की शादी कराई ।
कुछ वर्ष बीते ,बनी वो भी माता ।
समझने लगी अब,माँ बच्चे का नाता।
बहुत याद आतीं ,बो बचपन की बातें ।
आतीं है याद माँ की , वे भीगी सी आँखें ।
क्षमा मांगती फिर,फ़रियाद करती ।
फ़रिश्ते सी माँ की ,राहें है तकती ।
दुआओं को सिर पर,महसूस करती ।
कहती है सबसे ,न माँ को सताना।
ये ईश्वर से बढ़कर,इसे न रूलाना ।
