स्वरचित मौलिक अर्चना आनंद गाजीपुर उत्तर प्रदेश
ऊंची अट्टालिकाएं,
अमीरों के लिए बनाता।
खुद की झोपड़ी में,
भूखे पेट सो जाता।
बच्चों को दूध की जगह,
थपकियां दे सुलाता।
ये मेहनत कश मजदूर है,
मुसीबतों की दरिया में ही,
अपना आशियाना बसाता।।
खुले आकाश में,
तप्त रवि प्रकाश में,
कड़कती, बिजली बरसात में,
स्वेद श्रम जल से सींचकर,
पहाड़ों को चीरकर,
नव निर्माण की नींव रखता,
ये मेहनत कश मजदूर है,
पर नाम के लिए कभी न मरता।।
मार, मंहगाई की खाता,
प्यास, अमीरों के अपमान से बुझाता,
आवास, अंबर को बनाता,
लिबास, कपास के कपड़े से सिलवाता,
ये मेहनत कश मजदूर है,
मजबूरियों में ही,
सारा जीवन गुजार जाता।।
